Sunday, February 10, 2019

ङार कलावै भरने पौंदे।
ठार सिआले ठरने पौंदे।
अपना ढंडा आपूं फूकी ,
जालो खाले जरने पौंदे।
जीन दुहारा मूंढै चुक्की
सौ सौ मरने करने पौंदे।
मुंडी झिगड़ी करनी पौंदी
मत्थे पैरें धरने पौंदे।
चादर जिस’ले लौहकी पेई जा
गोडे नेड़े करने पौंदे।

बेकदरें ने लाना पौंदी।
लाइयै तोड़ नभाना पौंदी।
तलियें उप्पर मेखां खोबी
सूली जिंद टंङाना पौंदी।
बत्तर इत्थें मगरा पौंदा
पैहलें जान सकाना पौंदी।
ढाकै उप्पर बलदे सूरज
उसदी सारें सरने पौंदे।
al)चादर जिस’ले लौहकी पेई जा
गोडे नेड़े करने पौंदे।

अंदर तीली लाना पौंदी।
लाइयै होर भखाना पौंदी।
अपनी मैं दी कुन्नी चाढ़ी
खासा चिर गड़काना पौंदी।
मुगती करियै हीखी अड़ेआ
थोड़ी ने सरचाना पौंदी।
राह्इयै अंदर मासा मासा
रत्ती रत्ती चरने पौंदे।
चादर जिस’ले लौहकी पेई जा
गोडे नेड़े करने पौंदे।

एह्की सूरत भुलाना पौंदी।
बुद्धि मिरग बनाना पौंदी।
जेह्की चीज़ गुआचै बेह्ड़ै
अपने अंदर पाना पौंदी।
ओह्की उम्र बद्दाने गित्तै
एह्की उम्र मुकाना पौंदी।
सौ सौ जीवन जीने पौंदे
सौ सौ जीवन मरने पौंदे।
चादर जिस’ले लौहकी पेई जा
गोडे नेड़े करने पौंदे।

बडलै चरखी डाह्ना पौंदी।
तंदें जिंद कताना पौंदी।
इत्थें बेहियां नेईंयूं खंदे
सजरी रोज़ पकाना पौंदी।
जेह्की गंदल इत्थें पकदी
तलियें उप्पर राह्ना पौंदी।
गास बगान्ना नैनें भरियै
फुंग्गें फुंग्गें ब’रने पौंदे।
चादर जिस’ले लौहकी पेई जा
गोडे नेड़े करने पौंदे।


Saturday, February 9, 2019

             गिर रही है बर्फ, गिर रही है

खिड़कियों के चौखटों के बाहर
इस तूफान में जिरानियम के फूल
कोशिश कर रहे हैं उज्‍जवल तारों तक पहुँचने की।

गिर रही है बर्फ
हड़बड़ी मची है हर चीज में,
हर चीज जैसे उड़ान भरने लगी है
उड़ान भर रहे हैं सीढ़ी के पायदान
मोड़ और चौराहे।

गिर रही है बर्फ
गिर रही है
रूई के फाहे नहीं
जैसे आसमान पैबंद लगा चोगा पहने
उतर आया है जमीन पर।

सनकी आदमी का भेस बनाकर
जैसे ऊपर की सीढ़ी के साथ
लुका-छिपी का खेल खेलते हुए
छत से नीचे उतर रहा है आसमान।

जिंदगी इंतजार नहीं करती,
इसलिये थोड़ा-सा मुड़ कर देखा नही
कि सामने होता है बड़े दिन का त्‍योहार
छोटा-सा अंतराल और फिर नया वर्ष।

गिर रही है बर्फ घनी-घनी-सी
उसके साथ कदम मिलाते हुए
उसी रफ्तार, उसी सुस्‍ती के साथ
या उसी के तेज कदमों के साथ
शायद इसी तरह बीत जाता है समय ?
शायद साल के बाद साल
इसी तरह आते हैं जिस तरह बर्फ
या जिस तरह शब्‍द महाकाव्‍य में।

गिर रही है बर्फ, गिर रही है
हड़बड़ी मची है हर चीज में :
बर्फ से ढके राहगीरों
चकित चौराहों
और मोड़ों के इर्द-गिर्द।
सब रास्‍ते भर जाते हैं बर्फ से
छत की दलानों पर बर्फ के ढेर।
निकलता हूँ बाहर सैर के लिए
कि खड़ी मिलती हो तुम किवाड़ के पास।

अकेली, पतझर के मौसम का ओवरकोट पहने
टोपी और दस्‍तानों के बिना,
लड़ रही होती हो तुम अपनी उद्धिग्‍नता से
और चबाती रहती हो गीली बर्फ।

हट जाते हैं पीछे अंधकार में
सारे पेड़ और बाड़।
हिमपात के बीच अकेली
खड़ी रहती हो तुम एक कोने में।

सिर पर बँधे रूमाल से टपकती हैं बूँदें
आस्‍तीनों से होती हुई कलाई तक,
ओसकणों की तरह वे
चमकती हैं तुम्‍हारे बालों में।

बालों की श्‍वेत लटों में
आलोकित है मुखमण्‍डल
रूमाल और शरीर
और यह ओवरकोट।

बरौनियों पर पिघलती है बर्फ
और आँखों में अवसाद
पूरी-की-पूरी तुम्‍हारी आकृति
बनी हो जैसे एक टुकड़े से।
मेरे हृदय के बहुत भीतर
घुमाया गया है तुम्‍हें
पेच की तरह,
सुरमे से ढके लोहे के टुकड़े की तरह।

तुम्‍हारे रूप की विनम्रता
कर गई है घर हृदय के भीतर
अब मुझे कुछ लेना-देना नहीं
दुनिया की निष्‍ठुरता से।

इसीलिए धुँधली और अस्‍पष्‍ट
दिख रही है यह रात इस बर्फ में,
संभव नहीं मेरे लिए खींच पाना
तुम्‍हारे और अपने बीच कोई लकीर।

कौन होंगे हम और कहाँ
जब उन बरसों में से
बची होंगी सिर्फ अफवाहे
और हम नहीं होंगे इस संसार में।



अमरनाथ को गाली दी है

अमरनाथ को गाली दी है भीख मिले हथियारों ने
अमरनाथ को गाली दी है भीख मिले हथियारों ने
चाँद-सितारे टांक लिये हैं खून लिपि दीवारों ने
इसीलियें नाकाम रही हैं कोशिश सभी उजालों की
क्योंकि ये सब कठपुतली हैं रावलपिंडी वालों की
अंतिम एक चुनौती दे दो सीमा पर पड़ोसी को
गीदड़ कायरता ना समझे सिंहो की ख़ामोशी को

हमको अपने खट्टे-मीठे बोल बदलना आता है
हमको अब भी दुनिया का भूगोल बदलना आता है
दुनिया के सरपंच हमारे थानेदार नहीं लगते
भारत की प्रभुसत्ता के वो ठेकेदार नहीं लगते
तीर अगर हम तनी कमानों वाले अपने छोड़ेंगे
जैसे ढाका तोड़ दिया लौहार-कराची तोड़ेंगे

आँख मिलाओ दुनिया के दादाओं से
क्या डरना अमरीका के आकाओं से
अपने भारत के बाजू बलवान करो
पाँच नहीं सौ एटम बम निर्माण करो

मै भारत को दुनिया का सिरमौर बनाने निकला हूँ
मैं घायल घाटी के दिल की धड़कन निकला हूँ ||