
Sunday, February 10, 2019
Saturday, February 9, 2019
गिर रही है बर्फ, गिर रही है
खिड़कियों के चौखटों के बाहरइस तूफान में जिरानियम के फूल
कोशिश कर रहे हैं उज्जवल तारों तक पहुँचने की।
गिर रही है बर्फ
हड़बड़ी मची है हर चीज में,
हर चीज जैसे उड़ान भरने लगी है
उड़ान भर रहे हैं सीढ़ी के पायदान
मोड़ और चौराहे।
गिर रही है बर्फ
गिर रही है
रूई के फाहे नहीं
जैसे आसमान पैबंद लगा चोगा पहने
उतर आया है जमीन पर।
सनकी आदमी का भेस बनाकर
जैसे ऊपर की सीढ़ी के साथ
लुका-छिपी का खेल खेलते हुए
छत से नीचे उतर रहा है आसमान।
जिंदगी इंतजार नहीं करती,
इसलिये थोड़ा-सा मुड़ कर देखा नही
कि सामने होता है बड़े दिन का त्योहार
छोटा-सा अंतराल और फिर नया वर्ष।
गिर रही है बर्फ घनी-घनी-सी
उसके साथ कदम मिलाते हुए
उसी रफ्तार, उसी सुस्ती के साथ
या उसी के तेज कदमों के साथ
शायद इसी तरह बीत जाता है समय ?
शायद साल के बाद साल
इसी तरह आते हैं जिस तरह बर्फ
या जिस तरह शब्द महाकाव्य में।
गिर रही है बर्फ, गिर रही है
हड़बड़ी मची है हर चीज में :
बर्फ से ढके राहगीरों
चकित चौराहों
और मोड़ों के इर्द-गिर्द।
सब रास्ते भर जाते हैं बर्फ से
छत की दलानों पर बर्फ के ढेर।
निकलता हूँ बाहर सैर के लिए
कि खड़ी मिलती हो तुम किवाड़ के पास।
अकेली, पतझर के मौसम का ओवरकोट पहने
टोपी और दस्तानों के बिना,
लड़ रही होती हो तुम अपनी उद्धिग्नता से
और चबाती रहती हो गीली बर्फ।
हट जाते हैं पीछे अंधकार में
सारे पेड़ और बाड़।
हिमपात के बीच अकेली
खड़ी रहती हो तुम एक कोने में।
सिर पर बँधे रूमाल से टपकती हैं बूँदें
आस्तीनों से होती हुई कलाई तक,
ओसकणों की तरह वे
चमकती हैं तुम्हारे बालों में।
बालों की श्वेत लटों में
आलोकित है मुखमण्डल
रूमाल और शरीर
और यह ओवरकोट।
बरौनियों पर पिघलती है बर्फ
और आँखों में अवसाद
पूरी-की-पूरी तुम्हारी आकृति
बनी हो जैसे एक टुकड़े से।
मेरे हृदय के बहुत भीतर
घुमाया गया है तुम्हें
पेच की तरह,
सुरमे से ढके लोहे के टुकड़े की तरह।
तुम्हारे रूप की विनम्रता
कर गई है घर हृदय के भीतर
अब मुझे कुछ लेना-देना नहीं
दुनिया की निष्ठुरता से।
इसीलिए धुँधली और अस्पष्ट
दिख रही है यह रात इस बर्फ में,
संभव नहीं मेरे लिए खींच पाना
तुम्हारे और अपने बीच कोई लकीर।
कौन होंगे हम और कहाँ
जब उन बरसों में से
बची होंगी सिर्फ अफवाहे
और हम नहीं होंगे इस संसार में।
अमरनाथ को गाली दी है
अमरनाथ को गाली दी है भीख मिले हथियारों ने
अमरनाथ को गाली दी है भीख मिले हथियारों ने
चाँद-सितारे टांक लिये हैं खून लिपि दीवारों ने
इसीलियें नाकाम रही हैं कोशिश सभी उजालों की
क्योंकि ये सब कठपुतली हैं रावलपिंडी वालों की
अंतिम एक चुनौती दे दो सीमा पर पड़ोसी को
गीदड़ कायरता ना समझे सिंहो की ख़ामोशी को
हमको अपने खट्टे-मीठे बोल बदलना आता है
हमको अब भी दुनिया का भूगोल बदलना आता है
दुनिया के सरपंच हमारे थानेदार नहीं लगते
भारत की प्रभुसत्ता के वो ठेकेदार नहीं लगते
तीर अगर हम तनी कमानों वाले अपने छोड़ेंगे
जैसे ढाका तोड़ दिया लौहार-कराची तोड़ेंगे
आँख मिलाओ दुनिया के दादाओं से
क्या डरना अमरीका के आकाओं से
अपने भारत के बाजू बलवान करो
पाँच नहीं सौ एटम बम निर्माण करो
मै भारत को दुनिया का सिरमौर बनाने निकला हूँ
मैं घायल घाटी के दिल की धड़कन निकला हूँ ||
अमरनाथ को गाली दी है भीख मिले हथियारों ने
चाँद-सितारे टांक लिये हैं खून लिपि दीवारों ने
इसीलियें नाकाम रही हैं कोशिश सभी उजालों की
क्योंकि ये सब कठपुतली हैं रावलपिंडी वालों की
अंतिम एक चुनौती दे दो सीमा पर पड़ोसी को
गीदड़ कायरता ना समझे सिंहो की ख़ामोशी को
हमको अपने खट्टे-मीठे बोल बदलना आता है
हमको अब भी दुनिया का भूगोल बदलना आता है
दुनिया के सरपंच हमारे थानेदार नहीं लगते
भारत की प्रभुसत्ता के वो ठेकेदार नहीं लगते
तीर अगर हम तनी कमानों वाले अपने छोड़ेंगे
जैसे ढाका तोड़ दिया लौहार-कराची तोड़ेंगे
आँख मिलाओ दुनिया के दादाओं से
क्या डरना अमरीका के आकाओं से
अपने भारत के बाजू बलवान करो
पाँच नहीं सौ एटम बम निर्माण करो
मै भारत को दुनिया का सिरमौर बनाने निकला हूँ
मैं घायल घाटी के दिल की धड़कन निकला हूँ ||
Friday, February 8, 2019
Deenu bhai pant
दीनू भाई पन्त हुन्दी
कविता ‘शैहर पैह्लो पैह्ल गे’
नौमी किश्त....
गे होगे इक करोह्,
रेहा रस्ते दा नीं थौह्
सोचां मिक्की केह् धोखा,
कन्नै तेजां कदूं लौह्का।
रस्ता इसगी औंदा होग,
आपूं सिड़का जाई पौग।
तेजां केरो-केरी ढलै,
बड़ा किश आप-मुहारा चलै।
जेलै पुज्जे जाई खड्डा,
तेजां आखै टपला लग्गा।
फराटी पंज करोह् लग्गी,
सिड़क लारिया दी लब्भी।
नुक्कां पकड़ी लेइयां हत्थ,
दमैं चले झट्ट-पटट।
ब'न्नतलाऽ पुजदे तोड़ी,
पैर परून होई गे।
शैहर पैहलो पैहल गे...
कविता ‘शैहर पैह्लो पैह्ल गे’
नौमी किश्त....
गे होगे इक करोह्,
रेहा रस्ते दा नीं थौह्
सोचां मिक्की केह् धोखा,
कन्नै तेजां कदूं लौह्का।
रस्ता इसगी औंदा होग,
आपूं सिड़का जाई पौग।
तेजां केरो-केरी ढलै,
बड़ा किश आप-मुहारा चलै।
जेलै पुज्जे जाई खड्डा,
तेजां आखै टपला लग्गा।
फराटी पंज करोह् लग्गी,
सिड़क लारिया दी लब्भी।
नुक्कां पकड़ी लेइयां हत्थ,
दमैं चले झट्ट-पटट।
ब'न्नतलाऽ पुजदे तोड़ी,
पैर परून होई गे।
शैहर पैहलो पैहल गे...
Deenu bhai pant
दीनू भाई पन्त 'शैहर पैह्लो-पैह्ल गे'
4)
दमैं बैठे जाई तलाs,
पक्की होई ए सलाह्।
अड़ेआ इक्क कम्म करचै,
इत्थां शैहर नस्सी चलचै।
उत्थें मि'न्त मजूरी करगे,
खीसे पैसें कन्ने भरगे।
चिट्टे टल्ले लाई चलगे,
खु'ल्ले सैर सपाटे करगे।
बैरी वाला चन्नू ठौकर,
रेहा पंज्जै म्हीने नौकर।
आंदी ठेइया गेदी झारी,
नेचा सुच्चा टूटी भारी।
सिरै प छत्ते रक्खी फिरदा,
बड़ा हस्सी- हस्सी मिलदा।
इत्थों भुक्खा मरदा गेआ,
उत्थें सुआस फिरी गे...
शैहर पैहलो पैहल गे....
4)
दमैं बैठे जाई तलाs,
पक्की होई ए सलाह्।
अड़ेआ इक्क कम्म करचै,
इत्थां शैहर नस्सी चलचै।
उत्थें मि'न्त मजूरी करगे,
खीसे पैसें कन्ने भरगे।
चिट्टे टल्ले लाई चलगे,
खु'ल्ले सैर सपाटे करगे।
बैरी वाला चन्नू ठौकर,
रेहा पंज्जै म्हीने नौकर।
आंदी ठेइया गेदी झारी,
नेचा सुच्चा टूटी भारी।
सिरै प छत्ते रक्खी फिरदा,
बड़ा हस्सी- हस्सी मिलदा।
इत्थों भुक्खा मरदा गेआ,
उत्थें सुआस फिरी गे...
शैहर पैहलो पैहल गे....
Deenu bhai pant
ग़लती कन्ने त्रीया बंद रेही दा हा, पाठक इन्ने चाS कन्ने पढ़ा करदे न, जे पुच्छी बैठे, त्रीया बंद कुत्थें ऐ?
3)
तेजां भाखड़िया बचारा।
कदें दुक्ख बंडै म्हाड़ा।।
बिंद तेज नेआ सभाS।
आखो खानै गी पेई जा।।
निक्के-बड्डे सब्बै खिंझन।
ध्याड़ी कम्म कराई पिंजन।।
ओह्दा चढ़ेआ रौंह्दा तुम्मन।
सब्बै आखन बुञन-बुञन।।
जित्थें होऐ धाम-धूनी।
उत्थें दौड़ी जा चूनी।।
कुदै होऐ साह्-बसाह्।
उत्थें दुनी चंद जा ।।
जित्थें पेई जा कान।
उत्थें तेजां दी पछान।।
अस दमैं दऊं साथी, भलेआं तंग पेई गे ।
शैहर पैह्लो-पैह्ल गे
3)
तेजां भाखड़िया बचारा।
कदें दुक्ख बंडै म्हाड़ा।।
बिंद तेज नेआ सभाS।
आखो खानै गी पेई जा।।
निक्के-बड्डे सब्बै खिंझन।
ध्याड़ी कम्म कराई पिंजन।।
ओह्दा चढ़ेआ रौंह्दा तुम्मन।
सब्बै आखन बुञन-बुञन।।
जित्थें होऐ धाम-धूनी।
उत्थें दौड़ी जा चूनी।।
कुदै होऐ साह्-बसाह्।
उत्थें दुनी चंद जा ।।
जित्थें पेई जा कान।
उत्थें तेजां दी पछान।।
अस दमैं दऊं साथी, भलेआं तंग पेई गे ।
शैहर पैह्लो-पैह्ल गे
Deenu bhai pant
ग़लती कन्ने त्रीया बंद रेही दा हा, पाठक इन्ने चाS कन्ने पढ़ा करदे न, जे पुच्छी बैठे, त्रीया बंद कुत्थें ऐ?
3)
तेजां भाखड़िया बचारा।
कदें दुक्ख बंडै म्हाड़ा।।
बिंद तेज नेआ सभाS।
आखो खानै गी पेई जा।।
निक्के-बड्डे सब्बै खिंझन।
ध्याड़ी कम्म कराई पिंजन।।
ओह्दा चढ़ेआ रौंह्दा तुम्मन।
सब्बै आखन बुञन-बुञन।।
जित्थें होऐ धाम-धूनी।
उत्थें दौड़ी जा चूनी।।
कुदै होऐ साह्-बसाह्।
उत्थें दुनी चंद जा ।।
जित्थें पेई जा कान।
उत्थें तेजां दी पछान।।
अस दमैं दऊं साथी, भलेआं तंग पेई गे ।
शैहर पैह्लो-पैह्ल गे
3)
तेजां भाखड़िया बचारा।
कदें दुक्ख बंडै म्हाड़ा।।
बिंद तेज नेआ सभाS।
आखो खानै गी पेई जा।।
निक्के-बड्डे सब्बै खिंझन।
ध्याड़ी कम्म कराई पिंजन।।
ओह्दा चढ़ेआ रौंह्दा तुम्मन।
सब्बै आखन बुञन-बुञन।।
जित्थें होऐ धाम-धूनी।
उत्थें दौड़ी जा चूनी।।
कुदै होऐ साह्-बसाह्।
उत्थें दुनी चंद जा ।।
जित्थें पेई जा कान।
उत्थें तेजां दी पछान।।
अस दमैं दऊं साथी, भलेआं तंग पेई गे ।
शैहर पैह्लो-पैह्ल गे
Deenu bhai pant
दीनू भाई पन्त 'शैहर पैह्लो-पैह्ल गे'
दूई किश्त--
2)
सोचां कियां जान छुड़कै,
बड्डा भाइया बक्ख गुढकै।
मऊ पिट्टै घड़ियें घड़ियें,
अग्ग लग्गो इनें मढियें।
अंदर नाजै दा नीं दाना,
उसनै हरद्वार जाना।
इक्क पेई गेई मरी,
चाचे शोंके दी च'बरी।
फौजदारी दित्ती करी,
उत्थें कियां होना बरी।
झोटी दंदेआ दा पेई,
ओह्दी जङ भज्जी गेई।
बाड़ी पेई गेई सोकै,
लाड़ी बेही रेही पेओकै।
दस्सां दुक्ख केह् केह्, नक्क प्राण आई गे।
शैहर पैहलो पैहल गे।
दूई किश्त--
2)
सोचां कियां जान छुड़कै,
बड्डा भाइया बक्ख गुढकै।
मऊ पिट्टै घड़ियें घड़ियें,
अग्ग लग्गो इनें मढियें।
अंदर नाजै दा नीं दाना,
उसनै हरद्वार जाना।
इक्क पेई गेई मरी,
चाचे शोंके दी च'बरी।
फौजदारी दित्ती करी,
उत्थें कियां होना बरी।
झोटी दंदेआ दा पेई,
ओह्दी जङ भज्जी गेई।
बाड़ी पेई गेई सोकै,
लाड़ी बेही रेही पेओकै।
दस्सां दुक्ख केह् केह्, नक्क प्राण आई गे।
शैहर पैहलो पैहल गे।
Deenu bhai pant
दीनू भाई पन्त 'शैहर पैह्लो-पैह्ल गे'
दूई किश्त--
2)
सोचां कियां जान छुड़कै,
बड्डा भाइया बक्ख गुढकै।
मऊ पिट्टै घड़ियें घड़ियें,
अग्ग लग्गो इनें मढियें।
अंदर नाजै दा नीं दाना,
उसनै हरद्वार जाना।
इक्क पेई गेई मरी,
चाचे शोंके दी च'बरी।
फौजदारी दित्ती करी,
उत्थें कियां होना बरी।
झोटी दंदेआ दा पेई,
ओह्दी जङ भज्जी गेई।
बाड़ी पेई गेई सोकै,
लाड़ी बेही रेही पेओकै।
दस्सां दुक्ख केह् केह्, नक्क प्राण आई गे।
शैहर पैहलो पैहल गे।
दूई किश्त--
2)
सोचां कियां जान छुड़कै,
बड्डा भाइया बक्ख गुढकै।
मऊ पिट्टै घड़ियें घड़ियें,
अग्ग लग्गो इनें मढियें।
अंदर नाजै दा नीं दाना,
उसनै हरद्वार जाना।
इक्क पेई गेई मरी,
चाचे शोंके दी च'बरी।
फौजदारी दित्ती करी,
उत्थें कियां होना बरी।
झोटी दंदेआ दा पेई,
ओह्दी जङ भज्जी गेई।
बाड़ी पेई गेई सोकै,
लाड़ी बेही रेही पेओकै।
दस्सां दुक्ख केह् केह्, नक्क प्राण आई गे।
शैहर पैहलो पैहल गे।
Thursday, February 7, 2019
Friday, February 1, 2019
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